Thursday, 26 October 2017

कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका संबंध सूचित हो उसे कारक कहते हैं| कारक वाक्य में संज्ञा, सर्वनाम का क्रिया से संबंधित सूचित करता है |


 कारक के भेद: कारक आठ प्रकार के होते हैं

  1. कर्ता                                          ने 
  2. कर्म                                          को 
  3. करण                                        से 
  4. संप्रदान                                     के लिए, को 
  5. अपादान                                    से 
  6. संबंध                                        का, के, की, रा, रे, री 
  7. अधिकरण                                 में पर 
  8. संबोधन                                     हे, अजी, अरे, अहो 


कर्ता कारक: वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में आता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं|
जैसे- राम ने रोटी खाई

कर्म कारक: वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं| इसके विभक्ति को है
जैसे-मां ने बच्चों को पढ़ाया

करण कारक: वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के संबंध का बोध हो ,उसे करण कारक कहते हैं |
जैसे-वह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटता है

संप्रदान कारक: जिसके लिए कुछ किया जाए या जिसको कुछ दिया जाए ,उनका बोध करने वाले शब्द के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं|
जैसे - अभिज्ञान प्रज्ञान को रुपए देता है

अपादान कारक: संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट हो, उसे अपादान कारक कहते हैं|
जैसे- हिमालय से गंगा निकलती है , अभिज्ञान घर से बाहर गया है|

संबंध कारक: संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या लगाव प्रतीत हो, उसे संबंध कारक कहते हैं
जैसे-राम की किताब, प्रज्ञान का घर

अधिकरण कारक: क्रिया या आधार को सूचित करने वाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को अधिकरण कारक कहते हैं| जैसे- वह द्वार-द्वार भीख मांगता चलता है|

संबोधन कारक: संज्ञा के जिस रुप से किसी को पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं| जैसे- हे- भगवान मुझे शक्ति दे, मुझे भक्ति दे ,अरे- पागल क्या कर रहा है |

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