Thursday 21 December 2017

ब्रिटिश भारत में भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy in British India)

  • औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था : अंग्रेजों ने भारत को ब्रिटेन के एक उपनिवेश या कॉलोनी के रूप में विकसित किया जब किसी देश की अर्थव्यवस्था किसी दूसरे देश द्वारा शासित होने लगे तो उसे उपनिवेशिक व्यवस्था कहते हैं। 
  • उपनिवेशिक देश, आर्थिक लाभ कोई और देश को देता है। 
  • अंग्रेजों ने भारत को कच्चे माल के स्रोत के रूप में विकसित किया और इंग्लैंड को कारखानों में निर्मित वस्तुओं के बाजार के रूप में विकसित किया। 
  • धन का बहिर्गमन :- भारत का कच्चा माल कम दामों पर लेकर विनिर्मित वस्तु को महंगे दामों पर बेचा गया जिससे मुद्रा अंग्रेजों के पास चला गया, जिसे धन के बहिर्गमन का सिद्धांत या ड्रेन थ्योरी कहते हैं। 
  • जान सुलिवन ने कहा है "हमारी अर्थव्यवस्था एक ऐसी स्पंज के रूप में काम करती है, जो गंगा किनारे से प्रत्येक अच्छी वस्तुओं को सोख लेती है और उसे टेम्स नदी के किनारे छोड़ देती है, निचोड़ देती है।  
  • भारत को एक तरह से पूरक अर्थव्यवस्था (कॉन्प्लिमेंटरी इकोनॉमी) के रूप में विकसित किया गया। 
  • दादाभाई नौरोजी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1867 में भारत के राष्ट्रीय आय का आकलन किया। 
  • दादा भाई नौरोजी ने अपनी बुक पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया ,1867 में धन के बहिर्गमन का सिद्धांत या आर्थिक दोहन का सिद्धांत और भारतीय राष्ट्रीय आय का आकलन किया। 
  • अंग्रेजों ने कभी भी वास्तविक रूप से भारत के राष्ट्रीय आय का आकलन का प्रयास नहीं किया और ना ही प्रति व्यक्ति आय की गणना की। 
  • निजी तौर पर कुछ भारतीय और भारतीय हितेषी अंग्रेजों ने इसकी गणना की, परंतु व्यापक रूप से सब से पहले दादा भाई नौरोजी ने किया। 
  • अंग्रेजो द्वारा भारत में किए जाने वाले धन के बहिर्गमन को दादाभाई नौरोजी ने  "अनिष्टों का अनिष्ट" कहा था और वह पहले भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजी सरकार को भारत के आर्थिक रुप से बर्बाद करने का दोषी कहा। 
  • 1867 - 68 में भारत में प्रति व्यक्ति आय ₹20 प्रति वर्ष थी। 
  • दादाभाई नौरोजी के अलावा विलियम डिब्बी , आर सी दत्त, और रानडे ने भारत के इकनोमिक का अध्ययन किया। 
  • आर सी दत्त ने 1901 में लिखिए अपनी पुस्तक इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया में ड्रेन थ्योरी  और भारत के राष्ट्रीय आय पर चर्चा की थी। 
  • गतिहीन विकास :- गतिहीन विकास एक ऐसी अर्थव्यवस्था को कहते हैं जिसमें साल दर साल कोई वृद्धि ना हो या एक समान हो। 
  • ब्रिटिश काल में कृषि क्षेत्र की स्थिति ब्रिटिश सरकार ने भारत कृषि क्षेत्रों पर दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए 
    1. भू राजस्व व्यवस्था में परिवर्तन 
    2. कृषि का व्यवसायीकरण 
भू राजस्व व्यवस्था में परिवर्तन
  • अधिक से अधिक लगान वसूलने के लिए तीन नए पद्धतियों को लागू किया गया 
  • स्थाई बंदोबस्त या जमीदारी प्रथा 
    • स्थाई बंदोबस्त जमीदारी प्रथा 1793 में कार्नवालिस ने आरंभ किया 
    • स्थाई बंदोबस्त पर समझौता जमीदार के साथ किया गया 
    • जिम्मेदारों को भूमि का स्वामी माना गया 
    • किसानों से लगान वसूली जमींदारों का उत्तरदायित्व था 
    • सूर्यास्त का नियम लागू किया गया 
    • सूर्यास्त का नियम :- इस नियम के अनुसार दिए गए समय तिथि के सूर्यास्त तक जमीदारों के द्वारा कर अदा नहीं करने पर उनको उनकी जिम्मेदारी से हाथ धोना पड़ता था, या  उनके जमीन उनसे छीन लिए जाते थे जप्त कर लिए जाते थे।  
    • जमींदार लगान का 10/11 भाग कंपनी को 1/11 भाग अपने पास रख सकते थे। 
    • जेम्स ग्रांट और सर जॉन शोर कार्नवालिस के सलाहकार थे। 
    • ब्रिटिश भारत के 5 क्षेत्र में से लागू किया गया 
      1. बंगाल 
      2. बिहार 
      3. उड़ीसा 
      4. बनारस 
      5. उत्तर कर्नाटक 
    • कोलकाता प्रेसिडेंसी के अंतर्गत बंगाल, बिहार और उड़ीसा राज्य आते थे। 
    • समोच्च ब्रिटिश भारत की 19 प्रतिशत क्षेत्रफल पर लागू किया गया। 
    • इस व्यवस्था को अन्य नाम से जाना जाता है 
      • इस्तमरारी बंदोबस्त 
      • जागीरदारी व्यवस्था 
      • मालगुजारी व्यवस्था
      • बीसवेदारी  व्यवस्था
  • रैयतवाड़ी व्यवस्था 
    • 1795 में टॉम समुनरो  और कैप्टन रीड ने तमिलनाडु के बारामहल जिले से लागू किया। 
    • लगान वसूली की यह दूसरी भू राजस्व व्यवस्था मुख्य रूप से दक्षिण भारत में लागू की गई। 
    • रैयतवाड़ी व्यवस्था किसानों के साथ की गई थी अतः किसानों को भूमि का स्वामी माना गया। 
    • कृषक भू स्वामित्व की स्थापना की गई। 
    • ब्रिटिश भारत के चार क्षेत्रों में लागू किया गया 
      1. मद्रास प्रेसीडेंसी 
      2. बंबई प्रेसीडेंसी 
      3. असम 
      4. कर्नाटक के कुर्ग क्षेत्र में 
    • सर्वाधिक 51 प्रतिशत क्षेत्रफल पर लागू किया गया। 
  • महालवाड़ी व्यवस्था 
    • पूरे माहौल पर या ग्राम समुदाय को भूमि का स्वामी माना गया।  
    • सर्वप्रथम हास्ट मेकेंसी ने 1822 में लागू किया। 
    • ब्रिटिश भारत के तीन क्षेत्रों में से लागू किया गया। 
      1. पंजाब 
      2. यूपी के आगरा - अवध क्षेत्र में 
      3. मध्य प्रांत में 
    • ब्रिटिश भारत के कुल 30% क्षेत्रफल पर लागू किया गया। 
कृषि का व्यवसायीकरण 
  • इंग्लैंड के कारखानों को भारत से कच्चे माल की आपूर्ति करने के लिए अंग्रेजों ने खाद्यान्न फसलों के उत्पादन को हतोत्साहित किया और नगदी फसलों के उत्पादन प्रोत्साहित किया जैसे -कपास, जुट , नील गन्ना ,कॉफी, पटसन 
  • अंग्रेजी व्यापारी किसानों को पहले से रकम देकर एक अग्रिम समझौता करते थे ताकि किसान अपने खेत के निश्चित भू भाग पर नकदी फसल ही उगाये। 
  • तिनकठिया प्रथा  :- एक अग्रिम समझौते के तहत चंपारण (बिहार) के किसानों को अपनी जमीन के 3/20 भाग पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया जाता था। 
  • ब्रिटिश भारत में बहुत सारे छोटे- छोटे अकाल एवं 9 बड़े अकाल पड़ा।
  • इन अकाल के आने का दो प्रमुख कारण था 
    1. अधिक लगान के कारण किसानों ने खेती में रुचि लेना बंद कर दिया 
    2. कृषि का व्यवसायीकरण 
  • ब्रिटिश भारत में पहला अकाल 1969 -70 में आया जिसमें बंगाल, बिहार, उड़ीसा की एक तिहाई आबादी समाप्त हो गई 
  • सबसे भीषण अकाल बंगाल में 1943 में पढ़ा था जिससे बंगाली लोग भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार में पलायन कर गए 
ब्रिटिश भारत में उद्योगों की स्थिति 
  • भारत में विऔद्योगिकीकरण :- अंग्रेजों ने भारत में आधुनिक उद्योगों की स्थापना का प्रयास नहीं किया जैसा उन्होंने इंग्लैंड में किया था और परंपरागत उद्योगों का जैसे हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, काष्ट शिल्प उद्योग आदि का तेजी से विनाश किया जिसके परिणाम स्वरुप भारत में उद्योगों का विऔद्योगिकीकरण हुआ।  जिससे भारत में गरीबी बेरोजगारी आदि की समस्या उत्पन्न हुई।  
  • भारत में विऔद्योगिकीकरण के दो उद्देश्य थे 
    1. भारत सिर्फ कच्चे माल का निर्यातक रहे 
    2. इंग्लैंड में भी निर्मित माल का आयातक बना रहे 
  • यद्यपि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कुछ उद्योगों की स्थापना हुई 
    • 1854 मुंबई में सूती कपड़ा उद्योग 
    • 1859 रिशरा में जूट उद्योग 
    • 1870 कुल्टी में लौह-इस्पात उद्योग
    • 1907 में जमशेदपुर में टिस्को की स्थापना 
    • 1904 चेन्नई के रानीपेट में सीमेंट उद्योग 
    • लेकिन भारत में औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करने वाले पूंजीगत उद्योगों का अभाव ही बना रहा। 
  • ब्रिटिश भारत में विदेशी व्यापार 
    • कच्चे माल का निर्यातक 
    • विनियमित माल का आयातक अंतिम उपभोक्ता 
  • ददनी प्रथा : अंग्रेजी व्यापारी स्थानीय दस्तकारों कार्यक्रम और शिल्पी उसे हस्तनिर्मित माल प्राप्त करने के लिए अग्रिम बैरागी के रूप में उन्हें न्यूनतम धनराशि देते थे ताकि वे अंग्रेज के लिए माल तैयार करें 
  • 1818 में फोर्ट ग्लोस्टर में किया गया पहला वस्त्र होते हो असफल रहा

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