Friday 1 December 2017

प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास (History of Ancient Chhattisgarh)

प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास (History of Ancient Chhattisgarh)

  1. प्रागतिहासिक काल 
    • बस्तर क्षेत्र में वीर नायकों के सम्मान में अनेक काष्ठ स्तम्भ भी मिले हैं जो प्रागतिहासिक काल का परिचयक है। मसेनार,डिलमिली, चित्रकूट, किलेपाल, चिंगेनार, तारागाँव अदि से ये स्मारक मिले हैं।     
    • चित्तवा डोंगरी के शैलचित्रों को सर्वप्रथम श्री भगवान सिंह बघेल एंव डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने उजागर किया।
    • धनोरा के महापाषाण स्मारकों का सर्वेक्षण प्रो जे आर काम्बले और डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने किया था।
    1. पूर्व पाषाण युग 
      • पूर्व पाषाण काल के औजार महानदी घाटी तथा सिंघनपुर से प्राप्त हुए हैं।   
    2. मध्य पाषाण युग 
      • रायगढ़ के कबरा पहाड़ से मध्य पाषाण कालीन औजार जैस लम्बे फलक, अर्द्धचन्द्राकार लघु पाषाण औजार प्राप्त हुए हैं।  
    3. उत्तर पाषाण युग 
      • महानदी घाटी बिलासपुर जिले के धनपुर में स्थित चित्रित शैलाश्रय के निकट लघुकृत पाषाण औजार प्राप्त हुए हैं।   
      • रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में स्थित चित्रित शैलाश्रय के निकट लघुकृत पाषाण औजार प्राप्त हुए हैं।   
    4. नवपाषाण युग 
      • चित्रित हथौड़े दुर्ग के समीप अर्जुनी, राजनांदगांव के समीप चितवा डोंगरी और बोनटीला,तथा रायगढ़ के टेरम नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं।  
    5. लौह युगीन पाषाण स्तंभ 
      • दुर्ग के समीप करहीभदर, चिररारी और सोरर में पाषाण घेरों के अवशेष मेले हैं। 
      • दुर्ग के समीप करकभाटा से घेरो के साथ साथ लोहे के औजार और मृदभाण्ड प्राप्त हुए हैं। 
      • धनोरा के उत्खनन से 500 महापाषाण युगीन स्मारक प्राप्त हुए हैं 
  2. वैदिक काल 
    1. ऋग वैदिक काल 
      • ऋग वैदिक काल या पूर्व वैदिक काल में छत्तीसगढ़ का स्पष्ट वर्णन नहीं है क्योंकि इस काल तक आर्य छत्तीसगढ़ तक नहीं आये थे 
    2. उत्तर वैदिक काल 
      • कोशातकी उपनिषद में विन्ध्यपर्वत का उलेख है। 
      • परवर्ती वैदिक साहित्य में नर्मदा का उल्लेख रेवा के रूप में मिलता है। 
      • महाकव्यों में भी इस क्षेत्र का वर्णन है। 
  3. रामायण काल 
    • 'रामायण' से ज्ञात होता है कि राम की माता कौशल्या राजा भानुमन्त की पुत्री थीं।
    • "कोसल खण्ड' नामक एक अप्रकाशित ग्रन्थ से जानकारी मिलती है कि विंध्य पर्वत के दक्षिण में नागपत्तन के पास कोसल नामक एक शक्तिशाली राजा था। इनके नाम ही पर इस क्षेत्र का नाम 'कोसल' पड़ा।
    • कोसल राज्य दो भागों में बंटा हुआ था। दक्षिण कोसल जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी और उत्तर कोसल जिसकी राजधानी साकेत थी। 
    • दक्षिण कोसल राज्य में भानुमन्त नामक राजा हुआ, जिसकी पुत्री का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। 
    • भानुमन्त का कोई पुत्र नहीं था, अत: कोसल (छत्तीसगढ) का राज्य राजा दशरथ को  प्राप्त हुआ। इस प्रकार राजा दशरथ के पूर्व ही इस क्षेत्र का नाम 'कोसल' होना ज्ञात होता है। 
    • ऐसा माना जाता है कि वनवास के समय  सम्भवत: राम ने अधिकांश समय छत्तीसगढ के आस-पास व्यतीत किया था। 
    • स्थानीय परम्परा के अनुसार शिवरीनारायण, खरौद आदि स्थानो को रामकथा से सम्बद्ध माना जाता है। लोक विश्वास के अनुसार श्री राम , द्वारा सीता का त्याग कर देने पर तुरतुरिया (सिरपुर के समीप) में स्थित महर्षि वाल्मीकि ने अपने आश्रम में शरण दी थी और यही लव और कुश का ज़न्म हुआ माना जाता है। 
    • श्री राम के पश्चात् 'उत्तर कोसल' के राजा उनके ज्येष्ठ पुत्र लव हुए और अनुज कुश को "दक्षिण कोसल' मिला, जिसकी राजधानी कुशस्थली थी
  4. महाभारत काल 
    • महाभारत मे भी इस क्षेत्र का उल्लेख सहदेव द्वारा जीते गए राज्यों में प्राक्कोसल के रूप में मिलता है। 
    • बस्तर के अरण्य क्षेत्र को कान्तर के नाम से जाना जाता था।
    • कर्ण द्वारा की गई दिग्विजय में भी कोसल जनपद का नाम मिलता है। 
    • राजा नल ने दक्षिण दिशा का मार्ग बनाते हुए भी विंध्य के दक्षिण में कोसल राज्य का उल्लेख किया था।
    • महाभारतकालीन ऋषभतीर्थ भी जाँजगीर चंपा जिले में सक्ती के निकट गुंजी नामक स्थान से समीकृत किया जाता है। 
    • स्थानीय परम्परा के अनुसार भी मोरध्वज और ताम्रथ्वज की राजधानी 'मणिपुर' का तादात्मय वर्तमान 'रतनपुर' से किया जाता है। 
    • इसी प्रकार यह माना जाता हैं कि अर्जुन के पुत्र 'बभ्रुवाहन' की राजधानी 'सिरपुर' थी जिसे चित्रांगदपुर के नाम से जाना जाता था।
    • पौराणिक साहित्य से भी इस क्षेत्र के इतिहास पर विस्तृत प्रकाश पड़ता है। इस क्षेत्र के पर्वत एंव नदियों का उल्लेख अनेक पुराणों में उपलब्ध है। 
    • इस क्षेत्र में राज्य करते हुए "इक्ष्वाकुवंशियो" का वर्णन मिलता है। 
    • इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि मनु के पौत्र तथा सुद्युप्न के पुत्र विक्स्वान को यह क्षेत्र प्राप्त हुआ था।
  5. महाजनपद काल 
    • महाजनपद काल बुद्ध एंव महावीर का काल है।
    • देश अनेक जनपदों एवं महाजनपदों में विभक्त था। 
    • बौद्ध रचना अगुंतर निकाय और जैन रचना भगवती सुत्त में 16 महाजनपदों का वर्णन किया गया है।  छत्तीसगढ का वर्तमान क्षेत्र भी (दक्षिण) कोसल के नाम से एक पृथक प्रशासनिक इकाई था।
    • मौर्यकाल से पूर्व के सिक्को कीं प्राप्ति से इस अवधारणा की पुष्टि होती है। 
    • "अवदान शतक " नामक एक ग्रँथ के अनुसार महात्मा बुद्ध दक्षिण कोसल आये थें तथा लगभग तीन माह तक यहॉ की राजधानी में उन्होनें निवास किया था। 
    • ऐसी जानकारी चीनी  बौद्ध यात्री हैनसांग के यात्रा वृत्तातं "सी यु की" से भी मिलती है।
  6. मौर्य काल 
    • दक्षिण कोसल का क्षेत्र संभवत: नन्‍द मौर्य सम्राज्‍य का अंग था, इसकी जानकारी भी व्‍हेनसांग की यात्रा विवरण से मिलता है। मौर्यकाल के कुछ सिक्‍के अकलतरा, ठठारी, बार एवं बिलासपुर से प्राप्‍त हुए हैं। इसी काल के पुरात्विक स्‍थल सरगुजा जिले के रामगढ़ के निकट जोगीमारा और सीताबेंगरा नामक गुफाएं हैं। रामगढ़ की पहाड़ी में स्थित सीताबेंगरा गुफा विश्‍व की प्राचीनतम नाट्यशाला मानी जाती है ।
  7. सातवाहन काल 
    • सातवाहन राज्‍य की स्‍थापना मौर्य समाज के पतन के बाद हुई थी। दक्षिण कोशल का अधिकांश भाग सातवाहनों के प्रभाव क्षेत्र में था। सातवाहन राजा अपीलक की एकमात्र मुद्रा रायगढ़ के निकट बालपुर नामक गांव से प्राप्‍त हुई है। ऐसा माना जाता है कि प्रथम सदी में नागार्जुन छत्‍तीसगढ़ आया था। ह्वेनसांगन ने लिखा है कि दक्षिण कोशल की राजधानी के निकट एक पर्वत पर सातवाहन राजा ने एक सुरंग खुदवाकर प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागार्जुन के लिए एक पांच मंजिला भव्‍य संघाराम बनवाया था।
  8. वाकाटक काल 

  9. गुप्त काल 

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