ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्णसमूदाय को शब्द कहते हैं।
व्युत्पत्ति की दृष्टि भेद
- तत्सम शब्द : किसी भाषा के मूल शब्द को तत्सम कहते हैं
- तद्भव शब्द : ऐसे शब्द जो संस्कृत और प्राकृत से विकृत होकर हिंदी में आएे हैं उन्हे तद्भव शब्द कहते हैं
- देशज शब्द : देशज वे शब्द होते हैं जिनकी व्युत्पत्ति का पता नहीं चलता। ये देश में बोलचाल से बने होते हैं, इसलिए इन्हे देशज कहा जाता है।
- विदेशी शब्द : विदेशी भाषाओ से हिंदी में आये शब्दों को विदेशी शब्द कहते हैं।
- फारसी :अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, आवाज, आईना, उम्मीद, कद्द, कबूतर, कमीना, कुश्ती, कुश्ता, किशमिश, कमरबन्द, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश, खरगोश, खुश, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गोला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबंद, गुलाब, गुल, गोश्त,चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, जिंदगी, जादू, जागिर, जान, जुर्माना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, तेज, तीर, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसंद, पलंग, पैदावार, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मलीदा, मुफ्त, मोर्चा, मीना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, वर्ना, वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, सरदार, सरकार, सूद, सौदागर, हफ्ता, हजारा, आदि।
- अरबी: अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, अक्ल, अहमक, अल्ला, आसार, आखिर, आदमी, आदत, इनाम, इजलास, इज्जत, इमारत, इस्तीफा, इलाज, ईमान, उम्र,एहसान, औरत, औसत, औलाद, कसूर, कदम, कसर, कब्र, कमाल, कर्ज, किस्त,किस्मत, किस्सा, किला, कसम, कत्ल, कलम, कानून, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा, कातिल, खबर, खत्म, खत, खिदमत, खराब, खयाल, गरीब, गैर, जाहिल, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, जालिम, जिक्र, जिहन, तमाम, तकाजा, तकदीर, तारीख, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, दाबा, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, दिक, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, नकल, नहर, फकीर, फायदा, फैसला, बाज, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मुद्दई, मरजी, माल, मिसाल,मजबूर, मुंसिफ, मालूम, मामूली, मुकदमा,मुल्क,मल्लाह, मवाद, मौसम, मौका, मौलवी, मुसाफिर, महशुस, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मात, यतीम, राय, लिहाज, लफ्ज, लहजा, लिफाफा, लियाकत, लायक, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात, हौसला, रिश्वत औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।
- तुर्की: आगा, आका, उजबक, उर्दू, कालीन, काबू, कज्जाक, कुली, कुर्की, कैंची, चिक, चेचक, चमचा, चुगुल, चकमक, चाकू, जाजिम, तमगा, तलाश, तोप, बेगम, बहादुर, बारूद, मुगल, लफंगा, लाश, सौगात, सुराग, दारोगा आदि।
- पुर्तगाली: अचार, आलपीन, अनन्नास, अलकतरा, अलमारी, बाल्टी, किरानी, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज , गोभी, नीलाम, परात, पादरी, पिस्तौल, फार्म, मेज, बुताम, मस्तूल, लबादा, साया, सागु, आया, इस्पात, इस्तिरी, कनस्टर, कमरा, काजू, क्रिस्तान, गमला, गोदाम आदि।
- अंग्रेजी: कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि
- फ्रांसीसी: पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।
- चीनी: तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।
- यूनानी: टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।
- जापानी: रिक्शा आदि।
- डच: बम आदि।
अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद
- सार्थक शब्द : जिन शब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ हो वे शब्द सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे-रोटी, पानी, ममता, डंडा आदि।
- निरर्थक शब्द : जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है वे शब्द निरर्थक कहलाते हैं। जैसे-रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा इनमें वोटी, वानी, वंडा आदि निरर्थक शब्द हैं। निरर्थक शब्दों पर व्याकरण में कोई विचार नहीं किया जाता है।
बनावट के आधार पर शब्द-भेद
- रूढ़ शब्द: रूढ़ शब्द वह होते हैं जो परंपरा से एक विशेष अर्थ में चले आ रहे हैं और इनका शब्दांश या शब्द खंड निरर्थक होते हैं । जैसे- हवा, बकरी, नीम इत्यादि ।
- यौगिक शब्द : यौगिक शब्द वह होते हैं जो दो या दो अधिक शब्द खंडो से बने होते हैं । जैसे- विद्यालय, रमेश, प्रधानाचार्य इत्यादि ।
- प्रत्यय लगाकर
- कृत प्रत्यय: वह शब्दांश जो क्रियाओं (धातुओं) के अंत में लगकर नए शब्द की रचना करते हैं कृत प्रत्यय कहलाते हैं । कृत प्रत्यय के योग से बने शब्दों को (कृत+अंत) कृदंत कहते हैं। जैसे- वच् + अन् = वचन, घट+ अना= घटना, लिख+आवट= लिखावट आदि।
- तद्धित प्रत्यय: जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम अथवा विशेषण के अंत में लगकर नए शब्द बनाते हैं तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे- आध्यात्म+ इक= आध्यात्मिक , पशु+ त्व= पशुत्व आदि।
- उपसर्ग लगाकर: वे शब्दांश या अव्यय जो किसी शब्द के आरंभ में लगते हैं और उनके विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं । जैसे- स्वदेश, प्रयोग इत्यादि । स्वदेश में स्व उपसर्ग है । प्रयोग में प्र उपसर्ग है ।
- संस्कृत उपसर्ग : 19
- हिंदी उपसर्ग : 10
- उर्दू उपसर्ग : 12 (अल, कम, खुश,गैर, दर, ना, बद, बर, बिल, बे, ला,हम )
- संधि द्वारा
- समास द्वारा
- योगरुढ शब्द : योगरुढ ऐसे यौगिक शब्द जो शब्द खंड के अलावे भी दूसरे अर्थ देते हैं । लेकिन इन शब्दों का इस्तेमाल विशेष अर्थ में किया जाता है । जैसे- लंबोदर यानी लंबे उदर वाला । इस प्रकार से जिसका पेट लंबा हुआ वो सब लंबोदर हुए । लेकिन लंबोदर गणेशजी के लिए प्रयोग किया जाता है
विकार की दृष्टि से शब्द-भेद
- विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
- अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
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